छत्तीसगढ़ में सामाजिक - आर्थिक कल्याण का स्थानिक प्रतिरूप ;ैचंजपंस च्ंजजमतद िैवबपव.मबवदवउपब ॅमसस.ठमपदह पद ब्ीींजजपेहंतीद्ध

 

डाॅ. (श्रीमती) अनुसुइया बघेल

प्रोफेसर, भूगोल अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर

 

शोध सारांशरू

प्रस्तुत अध्ययन के उद्देश्य छत्तीसगढ़ में सामाजिक - आर्थिक कल्याण में स्थानिक भिन्नता की व्याख्या है। अध्ययन हेतु आर्थिक सर्वेक्षण, 2013-14 छत्तीसगढ़ से आंकड़े एकत्र किए गए हैं। सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा को ज्ञात करने के लिए 9 कारक - पेयजल की सुविधा की उपलब्धता, प्रकाश के स्रोत, शौचालय की उपलब्धता, स्नान घर की उपलब्धता, जल निकास की सुविधा, रसोई घर की उपलब्धता, खाना बनाने के लिए प्रयुक्त ईंधन की प्रकार, बैकिंग सेवा का लाभ, परिवारों के पास उपलब्ध परिसम्पत्ति का चयन किया गया है। छत्तीसगढ़ सभी 27 जिलों में इन 9 कारकों को पी.एल. नाॅक्स की विधि के अनुसार सूचकांक में परिवर्तित किया गया है अधिक सूचकांक कम कल्याण और कम सूचकांक अधिक कल्याण को व्यक्त करता है। छत्तीसगढ़ में यह सूचकांक सबसे कम दुर्ग जिले में 8.4 और सबसे अधिक बीजापुर जिले में 92 है जो सामाजिक आर्थिक कल्याण की मात्रा दुर्ग जिले में सर्वाधिक तथा बीजापुर जिले में सबसे कम को व्यक्त करता है। छत्तीसगढ़ के पांच जिलो- दुर्ग, रायपुर, राजनांदगाँव, धमतरी एवं बिलासपुर में सामाजिक- आर्थिक कल्याण की मात्रा अधिक है। जहां यह सूचकांक 30 से कम है। इसके विपरीत प्रदेश के 7 जिलों - गरियाबंद, बलरामपुर, जशपुर, मुंगेली, नारायणपुर, सुकमा, एवं बीजापुर जिलों में सामाजिक- आर्थिक कल्याण की मात्रा बहुत ही कम है। जहां यह सूचकांक 70 से अधिक है। वास्तव में सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा को भौतिक कारक, जनसंख्या का घनत्व, मिट्टी की उर्वरता, निराफसली क्षेत्र, यातायात के साधन प्रभावित करतीें है।

 

शब्द संक्षेपः कल्याण, स्थानिक, प्रतिरूप, सहसंबंध।  

 

प्रस्तावनाः

कल्याणपरक भूगोल मानव भूगोल की एक नवीन क्रमबद्ध शाखा है। कल्याणपरक भूगोल का उद्देश्य सामाजिक वांछनीयता की वैकल्पिक भौगोलिक दशा का मूल्यांकन है। मिथान (1964) के अनुसार सैध्दांतिक कल्याणपरक भूगोल अध्ययन की वह शाखा है जो यह प्रस्ताव बनाने का प्रयास करता है जिसके द्वारा हम अच्छा या बुरे ;ळववक वत ठंकद्ध के मापक पर समाज के लिए वैकल्पिक भौगोलिक दशाओं को कोटि क्रम प्रदान कर सकते हैं। नाथ (1973) अनुसार कल्याणपरक भूगोल का वह भाग है जो कि समाज की इस भलाई पर विभिन्न भौगोलिक नीतियों के संभावित प्रभावों का अध्ययन करता है। हैण्डरसन एवं क्वाट (1958) के अनुसार कल्याणपरक भूगोल का उद्देश्य सामाजिक वांछनीयता की वैकल्पिक भौगोलिक दशा का मूल्यांकन है। स्मिथ (1977) के अनुसार मानव भूगोल मानव कल्याण का अध्ययन करता है। चूंॅकि मानव कल्याण के मुद्दे सम्पूर्ण मानव भूगोल में व्याप्त हैं इसलिए कल्याण की विचारधारा मानव भूगोल को परिभाषित करता है।

 

मानव भूगोल की विषयवस्तु में क्रमशः परिवर्तन होते रहें हैं जो मानव की समस्याओं को प्रतिबिंबिंत करते हैं। 1962 के आस-पास शारीरिक स्वास्थ्य ;च्ीलेपबंस भ्मंसजीद्ध चिकित्सा भूगोल में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था। मानव भूगोल में प्रासंगिक क्रांति ;त्मसमअमदबम त्मअवसनजपवदद्ध ने वास्तविक मानवीय समस्याओं पर ध्यान आकर्षित किया। गोल्ड (1969) के अनुसार मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र को विकसित करने के प्रयास से जीवन स्तर सूचकांक ;स्मअमस िस्पअपदह प्दकमगद्ध को प्रादेशिक परिसीमन के लिए उपयोग किया गया है और स्थान की प्राथमिकता को कल्याण सूचक से संबंधित करने का प्रयास किया गया है। कल्याणपरक भूगोल में गुणात्मक और संख्यात्मक ;छवतउंजपअम ंदक च्वेपजपअम ।चचतवंबीमेद्ध दोनों तत्वों को अध्ययन में शामिल किया जाता है।

 

कल्याणपरक शब्द के लिए पर्यायवाची शब्द सामाजिक कल्याण ;ैवबपंस ॅमसंितमद्ध, जीवन स्तर ;ैजंदकंतक िस्पअपदहद्धए कल्याण ;ॅमसस.इमपदहद्ध, जीवन स्तर ;स्मअमस िस्पअपदहद्धए गुणात्मक जीवन ;फनंसपजल िस्पमिद्ध  जनसंख्या की स्थिति को चित्रित करने के लिए किया जाता है (कोब्स एवं अन्य, 1977) ड्रेवोस्की (1974) ने जीवन स्तर ;स्मअमस िस्पअपदहद्ध और कल्याण की मात्रा ;ॅमसस.इमपदहद्ध में अन्तर किया जाता है। ड्रेवोस्की ने जीवन स्तर के लिए 9 सूचक बताए जो भौगोलिक विभिन्नताओं से सीधा संबंध रखते हैं। ड्रेवोस्की ने कल्याण की मात्रा के सूचकों को चार वर्गाें -शारीरिक, पोषण स्तर, शैक्षणिक स्तर और सामाजिक में रखा है। इन चार वर्गों को पुनः उपवर्गाें में रखा गया है।

 

फकरूद्दीन (1991) ने लखनऊ नगर में जीवन की गुणवत्ता ज्ञात करने के लिए कारक विश्लेषण विधि को अपनाया। एडेलमेन और मौरिस (1967) ने 24 अल्पविकसित देशों में राजनीतिक और आर्थिक विकास ज्ञात करने के लिए 25 सूचक शामिल किये हैं। किंग (1974) ने सामाजिक विकास को ज्ञात करने के लिए 15 सूचक लिये। स्मिथ (1973) ने संयुक्त राज्य में सामाजिक कल्याण को ज्ञात करने के लिए 7 सूचक-आय, स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन, निवास स्थान का वातावरण, सामाजिक स्तर एवं सामाजिक सहभागिता को शामिल किया है। कोईली (1974) ने जीवन की गुणवत्ता को ज्ञात करने के लिए 4 सूचक समूह- सामग्री से संबंधित, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और धार्मिक विश्वास रखे हैं। तत्पश्चात् इन चारों सूचकों को कई उपवर्गाें में रखा है।

 

संयुक्त राष्ट्र (1970) ने विश्व के विभिन्न भागों में विकास के स्तर एवं सामाजिक कल्याण की मात्रा को ज्ञात करने के लिए विभिन्न सूचक चयनित किए जो क्षेत्र विशेष के लिए उपयुक्त हो। यह सामाजिक कल्याण की मात्रा जीवन स्तर को प्रतिबिंबित करता है जो अन्य विशेषता - संख्या, प्रकार, गुणात्मक एवं संस्थागत सुविधाओं की उपलब्धता पर निर्भर करता है। गोपाल एवं गोपाल कृष्ण (1984) पंजाब में सामाजिक - आर्थिक विकास के सतर में प्रादेशिक असमानता को स्पष्ट किया दुबे (1974) मध्यप्रदेश के विभिन्न 45 जिलों में सामाजिक कल्याण की मात्रा में भिन्नता को बताया। उन्होंने इसके लिए 11 कारकों - प्रति व्यक्ति आय, खाद्य उपलब्धता, प्रति मकान जनसंख्या का घनत्व, चिकित्सक - जनसंख्या अनुपात, जन्मदर, मृत्युदर, साक्षरता, अपराध, जनसंख्या - पोलिस अनुपात, जनसंख्या - बस अनुपात और मतदान को आधार माना

 

आँकड़ो के स्रोत एवं विधितंत्र ;ैवनतबमे िक्ंजं ंदक डमजीवकवसवहलद्धरू

प्रस्तुत शोध पत्र छत्तीसगढ़ में आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 से लिया गया है। छत्तीसगढ़ में सामाजिक कल्याण की मात्रा में स्थानिक प्रतिरूप को ज्ञात करने के लिए 9 घटकों का चयन किया गया है और पाॅल एल. नाॅक्स (1975) की विधि के अनुसार छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिले में सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा ज्ञात किया गया  है। चयनित सभी 9 घटकों के प्रतिशत को प्रदेश के 27 जिलों के प्रतिशत के आधार पर कोटि प्रदान किया गया है। अधिकतम प्रतिशत को प्रथम और कम प्रतिशत को 27वां कोटि प्रदान किया गया है। तत्पश्चात् सभी घटकों के कोटि का योग प्राप्त कर लिया गया है। इस योग को जिलों की संख्या और घटकों की संख्या के गुणनफल से विभाजित कर 100 से गुणा कर प्रतिशत ज्ञात किया गया है। यह उस जिले के कल्याण की मात्रा को दर्शाता है। यह कल्याण का संकेतांक कम होना अधिक कल्याण की मात्रा को दर्शाता है। इसके विपरीत अधिक संकेतांक कम कल्याण की मात्रा को दर्शाता है। पाॅल एल. नाॅक्स की विधि के अनुसार छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिले में सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा ज्ञात किया गया है

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प्र त्र जिले की सामाजिक - आर्थिक कल्याण सूचकांक

Σ त्र त्र जिले की प्रत्येक घटक के कोटि का योग

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ब् त्र अध्ययन क्षेत्र में जिलों की संख्या

 

अध्ययन क्षेत्र ;ैजनकल ।तमंद्धरू

नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य का गठन भारत के 26 वें राज्य के रूप में 1 नवम्बर 2000 को  हुआ क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में प्रदेश का स्थान 11 वां एवं जनसंख्या की दृष्टि से 17 वां है छत्तीसगढ़ 17°.46श् से 20°.6श् उत्तर अक्षांश एवं 80°.15श् से 84°.24श् पूर्व देशांश के मध्य 1,35,194 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत है 2011 की जनसंख्या के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या 255,451,198 है प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व 189 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है 2001 से 2011 के दशक में राज्य की जनसंख्या में 22.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है राज्य की 76.8 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है राज्य की 12.8 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति एवं 30.6 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है राज्य की कुल जनसंख्या में से 74.04 प्रतिशत (7 वर्ष एवं ऊपर) जनसंख्या साक्षर है प्रदेश में लिंगानुपात 991 प्रति हजार पुरूष है

 

अध्ययन के उद्देश्य ;व्इरमबजपअमेद्धरू

प्रस्तुत अध्ययन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं  -

1.  छत्तीसगढ़ राज्य के विभिन्न जिलों में सामाजिक - आर्थिक कल्याण में भिन्नता की व्याख्या करना।

2.  विभिन्न जिलों में सामाजिक - आर्थिक कल्याण में भिन्नता को प्रभावित करने वाले भौतिक एवं जनांकिकीय कारकों की व्याख्या करना है

 

सामाजिक - आर्थिक कल्याण के घटक ;ब्वउचवदमदजे िैवबपव . मबवदवउपब ॅमसस.इमपदहद्धरू

छत्तीसगढ़ में सामाजिक कल्याण को ज्ञात करने के लिए परिवारों को उपलब्ध सुविधाओं के 9 सूचकांक शामिल किए गए हैं -

1.  पेयजल के मुख्य स्रोत

2.  प्रकाश के मुख्य स्रोत

3.  शौचालय की उपलब्धता

4.  स्नान घर की उपलब्धता

5.  जल निकास की सुविधा

6.  पृथक रसोई घर की उपलब्धता

7.  खाना पकाने के लिए प्रयुक्त ईंधन के प्रकार

8.  बैकिंग सेवा का लाभ

9.  परिवारों के पास उपलब्ध परिसम्पत्ति

 

1. पेयजल के मुख्य स्रोत ;डंपद ैवनतबम िक्तपदापदह ॅंजमतद्धरू

छत्तीसगढ़ में हैण्डपंप पेयजल का मुख्य स्र्रोत है 58.7 प्रतिशत लोग हाथ पंप का पानी पीते हैं द्वितीय स्थान पर नल है प्रदेश में 20.7 प्रतिशत लोग नल का जल पीते हैं तीसरे स्थान पर कुएँ (11.4 प्रतिशत) है 7.2 प्रतिशत परिवारों के पास पीने के पानी का स्रोत नलकूप  है उल्लेखनीय है कि केवल 19.0 प्रतिशत परिवारों को परिसर के अंदर पीने का पानी उपलब्ध है जबकि 54.5 प्रतिशत परिवार को परिसर के नजदीक पीने का पानी उपलब्ध  है 26.5 प्रतिशत परिवार परिसर से काफी दूर से पीने का पानी लाते हैं अधिकतम नगरीय क्षेत्र जैसे रायपुर (40.4 प्रतिशत) एवं दुर्ग (48.8 प्रतिशत) जिलों में 40 प्रतिशत से अधिक परिवारों द्वारा पेयजल हेतु नलों का उपयोग किया जाता है

2. प्रकाश के मुख्य स्रोत

 

छत्तीसगढ़ राज्य में 75.3 प्रतिशत परिवार विद्युत को प्रकाश के मुख्य स्रोत के रूप में उपयोग कर रहे हैं। यह प्रतिशत रायपुर जिले में 93.9 प्रतिशत और दुर्ग जिले में 92.8 प्रतिशत  है जबकि बीजापुर में यह प्रतिशत मात्र 24.8 प्रतिशत है सौर्य ऊर्जा का उपयोग बीजापुर जिले में सर्वाधिक 3.9 प्रतिशत है। सौर्य ऊर्जा का उपयोग जशपुर और कोरिया जिले में क्रमशः 3.8 प्रतिशत तथा 3.4 प्रतिशत है 23.2 प्रतिशत परिवार प्रकाश हेतु मिट्टी के तेल उपयोग करते हैं छत्तीसगढ़ के 27 जिलों में मिट्टी तेल के उपयोग में अत्यधिक भिन्नता पायी गई है बलरामपुर (67.9 प्रतिशत), सुकमा (62.9 प्रतिशत) तथा बीजापुर (66.2 प्रतिशत) जिलों में 60 प्रतिशत से अधिक परिवार प्रकाश के स्रोत के लिए मिट्टी के तेल का उपयोग करते हैं जबकि दुर्ग तथा रायपुर जिले में यह प्रतिशत क्रमशः 6.6 प्रतिशत और 5.5 प्रतिशत है

 

3. शौचालय की सुविधा की उपलब्धता

छत्तीसगढ़ में एक-चैथाई परिवार (24.6 प्रतिशत) को अपने परिसर में शौचालय की सुविधा है इनमें से 21.0 प्रतिशत फ्लश तथा पोर शौचालय है तथा 3.5 प्रतिशत गड्ढा शौचालय है जबकि शेष 74 प्रतिशत परिवार शौच हेतु खुले स्थान का उपयोग करते हैं दुर्ग एवं रायपुर जिलों में 47 प्रतिशत परिवारों के पास परिसर के अंदर शौचालय की सुविधा  है उल्लेखनीय है कि इन जिलों में दुर्ग जिले में 6.6 प्रतिशत तथा रायपुर जिले में 4.9 प्रतिशत परिवार सार्वजनिक शौच का उपयोग करते हैं दुर्ग जिले में 45.7 प्रतिशत तथा रायपुर जिले में 47.4 प्रतिशत परिवार खुला शौचालय का उपयोग करते हैं

 

4. स्नान घर की सुविधा

छत्तीसगढ़ में 14.8 प्रतिशत परिवारों के पास स्नान घर उपलब्ध है इनमें से 5.4 प्रतिशत परिवारांे के स्नान घर छत विहीन हैं दुर्ग जिले में 44.2 प्रतिशत तथा रायपुर जिले में 42.2 प्रतिशत परिवारों के पास स्नान घर की सुविधा है इसके विपरीत बलरामपुर, मुंगेली, गरियाबंद, कोण्डागांव, बेमेतरा एवं जशपुर जिले में 90 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास किसी भी प्रकार के स्नान घर की सुवधिा उपलब्ध नहीं है

 

5. जल निकासी की सुविधा

 छत्तीसगढ़ में 24.2 प्रतिशत परिवारों के पास नाली की सुविधा है। इनमें से 5.3 प्रतिशत परिवारों के पास बंद जल निकासी तथा 18.9 प्रतिशत परिवारों के पास खुला जल निकास की सुविधा है। उल्लेखनीय है कि दुर्ग जिले में 20.4 प्रतिशत परिवारों को बंद जल निकास तथा 39.3 प्रतिशत परिवारों को खुला जल निकास की सुविधा उपलब्ध है जबकि रायपुर जिले में बंद जल निकास की सुविधा मात्र 9.9 प्रतिशत परिवारों के पास उपलब्ध है और 43.2 प्रतिशत परिवारों के पास खुला जल निकासी की व्यवस्था है

 

बिलासपुर, कोरबा, कोरिया तथा सुरजपुर जिले में 25 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास जल निकासी की सुविधा है किंतु यह अधिकांश खुला जल निकासी है खुला जल निकासी की सुविधा बिलासपुर जिले में 23.3 प्रतिशत, कोरबा एवं कोरिया जिले में  20.7 प्रतिशत तथा सूरजपुर जिले में 20.5 प्रतिशत परिवारों को उपलब्ध है

 

6. पृथक रसोई घर की उपलब्धता छत्तीसगढ़ में 56 प्रतिशत परिवार के पास पृथक रसोई घर है 40.7 प्रतिशत परिवार घर के अंदर खाना पकाते हैं किंतु पृथक रसोई घर नहीं है एवं 30 प्रतिशत परिवार का खाना मकान के बाहर पकता है उल्लेखनीय है कि 0.2 प्रतिशत परिवार खाना ही नहीं पकाते हैं कोण्डागांव जिले में सर्वाधिक 81.8 प्रतिशत परिवार के पास पृथक रसोई घर उपलब्ध है इसके अतिरिक्त कांकेर (78.0 प्रतिशत), सुरजपुर (74.7 प्रतिशत), दुर्ग (71.4 प्रतिशत) एवं दंतेवाड़ा (70.3 प्रतिशत) जिलों में 70 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास पृथक रसोई घर हैं, ये विषम धरातल के क्षेत्र हैं, तथा जनसंख्या विरली है अतः इन क्षेत्रों में रसोई घर के लिए आसानी से जमीन मिल जाती है इसके विपरीत घनी जनसंख्या के क्षेत्र जांजगीर - चांपा जिले में मात्र 36.2 प्रतिशत तथा बलौदाबाजार जिले में 36.1 प्रतिशत परिवार के पास पृथक रसोई घर है

7. खाना पकाने के लिए प्रयुक्त ईंधन के प्रकार

छत्तीसगढ़ में अधिकांश परिवार (80.8 प्रतिशत) परिवार रसोई के लिए जलाऊ लकड़ी पर निर्भर है यह प्रतिशत बलरामुपर, बीजापुर, गरियाबंद, जशपुर, कोण्डागांव, नारायणपुर, सुकमा तथा कांकेर जिले में 90 प्रतिशत से अधिक है ये घने वन के क्षेत्र हैं जहाँ जलाऊ लकड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इसके विपरीत दुर्ग जिले में यह प्रतिशत मात्र 37.1 प्रतिशत है छत्तीसगढ़ में मात्र 11.2 प्रतिशत परिवारों के पास एल.पी.जी. गैस उपलब्ध है। रायपुर जिले में 34.5 प्रतिशत तथा दुर्ग जिले में 31.7 प्रतिशत परिवारों के पास एल.पी.जी. गैस उपलब्ध है। कोरबा, कोरिया एवं बिलासपुर जिले में 15 प्रतिशत से अधिक परिवार के पास एल.पी.जी. गैस उपलब्ध है। उल्लेखनीय है कि कोयला (लिग्नाइट लकड़ी का कोयला) का खाना पकाने के लिए उपयोग दुर्ग जिले में सर्वाधिक 19.0 प्रतिशत परिवार करते हैं। यह प्रतिशत कोरबा जिले में 10.4 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ में खाना पकाने में प्रयुक्त ईंधन में 0.5 प्रतिशत परिवार मिट्टी का तेल, 0.2 प्रतिशत परिवार गोबर गैस, 0.1 प्रतिशत परिवार विद्युत एवं 0.1 प्रतिशत परिवार अन्य ईंधन का प्रयोग करते हैं

 

8. बैंकिंग सेवा की उपलब्धता

छत्तीसगढ़ में लगभग 48.8 प्रतिशत परिवारों के द्वारा बैंक सेवाओं का उपयोग किया जाता है बैकिंग सेवाओं का उपयोग कोरिया जिले में सर्वाधिक 70.2 प्रतिशत परिवार द्वारा किया जाता है बैकिंग सेवा के उपयोग में राजनांदगांव जिला (68.2 प्रतिशत) का द्वितीय स्थान है बालोद (66.5 प्रतिशत), कबीरधाम (66.1 प्रतिशत) और सुरजपुर (63.7 प्रतिशत) जिलों में यह प्रतिशत 60 प्रतिशत से अधिक है। इसके विपरीत सुकमा (22.1 प्रतिशत), बीजापुर (24.8 प्रतिशत), नारायणपुर (25.6 प्रतिशत) और जांजगीर चांपा (29.8 प्रतिशत) जिलों में 30 प्रतिशत से कम लोग बैकिंग सेवा का उपयोग कर पाते हैं।

 

9. परिवारों के पास उपलब्ध परिसंपत्ति

छत्तीसगढ़ राज्य में 31.3 प्रतिशत परिवारों के पास टेलीविजन है 30.3 प्रतिशत परिवार मोबाईल अथवा लैण्डलाइन फोन या दोनों से संपर्क करते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 4.6 प्रतिशत परिवारों के पास कम्प्यूटर/लैपटाॅप है प्रदेश के दुर्ग (63.1 प्रतिशत) तथा रायपुर (61.7 प्रतिशत) जिले के 60 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास टेलीविजन है इसके विपरीत बलरामपुर (7.7 प्रतिशत), सुकमा (8.1 प्रतिशत) एवं बीजापुर (8.4 प्रतिशत) जिलों में यह प्रतिशत 10 प्रतिशत से भी कम है रायपुर एवं दुर्ग जिलों में मोबाईल फोन अथवा टेलीफोन का उपयोग क्रमशः 56.3 प्रतिशत एवं 54.8 प्रतिशत परिवार करते हंै। इसके विपरीत सुकमा एवं बीजापुर जिलों में मोबाईल/टेलीफोन का उपयोग करने वाले परिवार क्रमशः 12.3 प्रतिशत और 10.0 प्रतिशत है इसी तरह से कम्प्यूटर/लैपटाॅप का उपयोग करने वाले परिवार दुर्ग (12.0 प्रतिशत) एवं रायपुर (11.2 प्रतिशत) जिलों में सर्वाधिक है यह प्रतिशत कोरबा जिले में 6.5 प्रतिशत एवं बिलासपुर जिले में 6.0 प्रतिशत है

 

छत्तीसगढ़ राज्य में अधिकांश परिवारों (61.0 प्रतिशत) के पास यातायात के साधन के रूप में सायकल है। यातायात के साधन में 15.6 प्रतिशत परिवारों के पास स्कूटर/मोटर सायकल/इंजन सायकल है यह प्रतिशत दुर्ग जिले में 35.3 प्रतिशत तथा रायपुर जिले में 31.1 प्रतिशत है इसके विपरीत सुकमा जिले में यह मात्र 4.9 प्रतिशत है छत्तीसगढ़ में कार/जीप/वैन 2.2 प्रतिशत परिवारों के पास है यह प्रतिशत दुर्ग जिले में 6.8 प्रतिशत और रायपुर जिले में 6.2 प्रतिशत है

 

बीजापुर (45.3 प्रतिशत), दंतेवाड़ा (45.5 प्रतिशत) एवं सुकमा (44.1 प्रतिशत) शीर्ष तीन जिले हैं जहाँ उपरोक्त परिसंपत्ति का प्रतिशत न्यूनतम है

 

छत्तीसगढ़ में सामाजिक - आर्थिक कल्याण का स्थानिक प्रतिरूप:

छत्तीसगढ़ में सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा में बहुत अधिक असमानता है एक ओर दुर्ग जिले में सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा सर्वाधिक 8.4 है तो दूसरी ओर बीजापुर जिले में यह न्यूनतम 92 है सामाजिक - आर्थिक कल्याण की दृष्टि से रायपुर (13.6) का द्वितीय स्थान है राजनांदगांव (24.7), धमतरी (25.7) एवं बिलासपुर (28.2) जिलों का क्रमशः तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम स्थान है छत्तीसगढ़ प्रदेश को सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा (मानचित्र क्र. 1) के आधार पर तीन स्पष्ट वर्गों में रखा जा सकता है

1.  अधिक कल्याण के क्षेत्र ( 30 सूचकांक)

2.  मध्यम कल्याण के क्षेत्र (30-50 सूचकांक)

3.  निम्न कल्याण के क्षेत्र (50-70 सूचकांक)

4.  अति निम्न कल्याण के क्षेत्र ( 70 सूचकांक)

 

1. अधिक कल्याण के क्षेत्र

छत्तीसगढ़ में अधिक सामाजिक - आर्थिक कल्याण के क्षेत्र में उन पाँच जिलों को शामिल किया गया है जहाँ कल्याण सूचकांक 30 से कम है ये जिले दुर्ग (8.4), रायपुर (13.6), राजनांदगांव (24.7), धमतरी (25.7) एवं बिलासपुर (28.2) हैं दुर्ग जिले में चयनित 9 घटकों में से 8 घटकों की कोटि 4 से कम है मात्र बैंकिंग सेवा उपलब्ध परिवारों में इस जिले सातवाँ स्थान है इसी तरह से रायपुर जिले में सभी घटक की कोटि द्वितीय है मात्र रसोई घर की सुविधा में दसवां स्थान और बैकिंग सुविधा की उपलब्धता की दृष्टि से 11.5वां स्थान है राजनांदगांव जिले में सभी घटकों की कोटि 9 से कम है धमतरी जिले में सभी घटकों की कोटि 10 से कम है धमतरी जिले में मात्र ईंधन के स्रोत की कोटि 9.5 है बिलासपुर जिले में सभी घटक की कोटि 10 से कम है किंतु रसोई घर की उपलब्धता में इस जिले का 12वां स्थान तथा बैकिंग सुविधा की उपलब्धता में 18.5वां स्थान है

 

दुर्ग जिले का परिसर के अंदर पीने के पानी की उपलब्धता (36.7 प्रतिशत), स्नान घर की उपलब्धता (44.2 प्रतिशत), जल निकासी की सुविधा (59.6 प्रतिशत), ईंधन के स्रोत में एल.पी.जी. गैस उपलब्धता (71.4 प्रतिशत), शौचालय सुविधा (47 प्रतिशत) एवं परिसंपत्ति (53.5 प्रतिशत) इन पाँच घटकों में प्रथम स्थान है इसी तरह बिजली की उपलब्धता (92.8 प्रतिशत) में तृतीय स्थान और पृथक रसोई घर की उपलब्धता (71.4 प्रतिशत) में चतुर्थ स्थान है

 

बिजली की उपलब्धता की दृष्टि से रायपुर जिले का प्रथम स्थान है पृथक रसोई घर की उपलब्धता की दृष्टि से कोण्डागांव जिले का प्रथम स्थान, कांकेर जिले का द्वितीय स्थान तथा सुरजपुर जिले का तृतीय स्थान है। बैकिंग सुविधा का उपयोग करने वाले परिवारों में कोरिया, राजनांदगांव, बालोद, कबीरधाम, सुरजपुर, बलरामपुर जिले के पश्चात् दुर्ग जिले का सातवां स्थान है

 

प्रदेश में उच्च सामाजिक - आर्थिक कल्याण के क्षेत्र छत्तीसगढ़ के मध्यवर्तीय मैदानी क्षेत्र हैं जहां उपजाऊ भूमि एवं यातयात की सुविधा उपलब्ध है अतः इन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 250 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है इन क्षेत्रों में साक्षरता का प्रतिशत भी अपेक्षाकृत अधिक है उल्लेखनीय है इन क्षेत्रों में परिवारों की आय भी अपेक्षाकृत अधिक है यही कारण है कि प्रदेश में सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा का जनसंख्या के घनत्व (-.54), साक्षरता (-.73) एवं पारिवारिक आय (-.32) के साथ ऋणात्मक सहसंबंध पाया गया है अतः इन क्षेत्रों में सूचकांक कम है जो इन क्षेत्रों में सामाजिक - आर्थिक कल्याण के उच्च स्तर को स्पष्ट करता है

 

2. मध्यम कल्याण के क्षेत्र

छत्तीसगढ़ प्रदेश में मध्यम सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में 7 जिले शामिल हैं जहँंा कल्याण सूचकांक 30 से 50 है मध्यम कल्याण के क्षेत्र में बालोद (31.1), कोरिया (31.5), कोरबा (33.5), सरगुजा (43.6), सुरजपुर (44.9), बस्तर (47.1) एवं कांकेर (46.9) जिले शामिल हैं पहाड़ी तथा विषम धरातल के क्षेत्रों में पाँच जिलों में बिजली की सुविधा 60 प्रतिशत से भी कम परिवारों में है एल.पी.जी. गैस की सुविधा इन जिलों में बहुत ही कम है यहाँ लकड़ी ही ईंधन का मुख्य स्रोत है बैकिंग सेवा की उपलब्धता बस्तर जिले में 35.3 प्रतिशत, कोरबा जिले में 45 प्रतिशत एवं कांकेर जिले में 49.7 प्रतिशत है।

 

इन विषम धरातल के क्षेत्रों में जनसंख्या के अनुपात में क्षेत्र अधिक है यही कारण है कि इन क्षेत्रों में शौचालय की सुविधा अपेक्षाकृत अधिक है साथ ही स्नान घर की सुविधा इन क्षेत्रों में पर्याप्त है किंतु सुरजपुर (6.8 प्रतिशत), कांकेर (9 प्रतिशत), और बालोद (9.6 प्रतिशत) जिले में यह प्रतिशत 10 से कम है पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण जल निकासी की व्यवस्था इन क्षेत्रों में सरलता से बना लेते हैं कांकेर जिले में यह मात्र 9.3 प्रतिशत है सुरजपुर, सरगुजा, कोरबा एवं कोरिया जिलों में जल निकासी की सुविधा 20 प्रतिशत से अधिक परिवारों में है इन जिलों में पृथक रसोई घर की व्यवस्था भी प्रदेश के औसत से अधिक है सुरजपुर जिले में 74.7 प्रतिशत, कांकेर जिले में 78 प्रतिशत और बस्तर जिले में 69.4 प्रतिशत परिवारों में रसोई घर की व्यवस्था है ईंधन के स्रोत में एल.पी.जी. गैस का उपयोग इन क्षेत्रों में 10 प्रतिशत से भी कम परिवार के पास है किंतु कोरबा एवं कांकेर जिले में 20 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास एल.पी.जी. गैस उपलब्ध है

3. निम्न सामाजिक कल्याण के क्षेत्र

निम्न सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में 8 जिले शामिल हैं जहाँ कल्याण सूचकांक 50 से 70 है ये जिले दंतेवाड़ा (50.0), रायगढ़ (51.0), महासमुंद (55.1), जांजगीर चांपा (59.3), कबीरधाम (61.3), बलौदाबाजार एवं बेमेतरा (63.4) एवं कोण्डागांव (66.0) जिले हैं। इन सभी जिलों में सामाजिक कल्याण के चयनित सभी 9 घटकों की कोटि 10 से अधिक है

 

 

बलौदाबाजार एवं बेमेतरा जिले में सभी घटकों की कोटि 10 से अधिक है मात्र बिजली सुविधा में रायपुर, दुर्ग एवं जांजगीर चांपा जिले के बाद चतुर्थ स्थान (89.8 प्रतिशत) है इसी तरह से महासमुंद जिले में भी सभी 8 घटकों की कोटि 10 से अधिक है मात्र परिसंपत्ति की दृष्टि से इस जिले का 8वां कोटि है रायगढ़ जिले में जल निकासी की सुविधा में 9वां स्थान एवं ईंधन स्रोत में एल.पी.जी. गैस की उपलब्धता में 11वां कोटि स्थान  है शेष 7 घटकों की कोटि 10 से अधिक है।

 

4. अति निम्न कल्याण के क्षेत्र

अति निम्न सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में 70 से अधिक सूचकांक वाले जिले शामिल  हैं। इस वर्ग में छत्तीसगढ़ के सात जिले शामिल हैं। इन सातों जिलों में गरियाबंद, बलरामपुर, जशपुर, मुंगेली, नारायणपुर, सुकमा एवं बीजापुर जिले शामिल हैं। इन जिलों में जनसंख्या का घनत्व 150 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर से भी कम है। जनसंख्या का घनत्व बीजापुर जिले और नारायणपुर जिले में मात्र 30 एवं सुकमा जिले में 75 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है। इन सभी जिलों में चयनित 9 घटकों की कोटि 20 से अधिक है। इन सभी जिलों में पीने के पानी का स्रोत परिसर के बाहर या अधिक दूरी पर है। परिसर के अंदर पीने का पानी की सुविधा बीजापुर जिले में मात्र 4.9 प्रतिशत तथा सुकमा जिले में 5.2 प्रतिशत है। इन जिलों में बिजली की सुविधा 40 प्रतिशत से कम परिवारों को उपलब्ध है। बिजली की सुविधा केवल मुंगेली (77.3 प्रतिशत) तथा गरियाबंद (64.1 प्रतिशत) जिलों में यह सुविधा 60 प्रतिशत से अधिक परिवारों को उपलब्ध है शौचालय की सुविधा बीजापुर जिले में 5.6 प्रतिशत तथा सुकमा जिले में 7.4 प्रतिशत परिवारों को ही उपलब्ध है मात्र नारायणपुर जिले में स्नान घर की सुविधा 7.7 प्रतिशत परिवारों को उपलब्ध है। यह प्रतिशत शेष जिलों में 5 प्रतिशत से भी कम है। जल निकासी की सुविधा मात्र मुंगेली जिले में 12.4 प्रतिशत है शेष जिलों में यह 6 प्रतिशत से भी कम है। पृथक रसोई घर की व्यवस्था बलरामपुर (59.4 प्रतिशत) तथा सुकमा (56.8 प्रतिशत) जिलों में 55 प्रतिशत से अधिक है। शेष जिलों में यह 50 प्रतिशत से भी कम है बलरामपुर जिले में 1.6 प्रतिशत, बीजापुर जिले में 2.8 प्रतिशत, गरियाबंद जिले में 2.6 प्रतिशत, मुंगेली जिले में 3.2 प्रतिशत, जशपुर एवं सुकमा जिले में मात्र 3.9 प्रतिशत परिवारों के पास ईंधन का स्रोत एल.पी.जी. गैस उपलब्ध है। यह प्रतिशत मात्र रायगढ़ जिला (9.9 प्रतिशत) तथा नारायणपुर (5.8 प्रतिशत) जिलों में पांच प्रतिशत से अधिक है। बैकिंग सेवा का उपयोग करने वाले परिवार सुकमा जिले में मात्र 22.1 प्रतिशत, नारायणपुर जिले में 25.6 प्रतिशत तथा बीजापुर जिले में 24.8 प्रतिशत है शेष जिले बलरामपुर तथा गरियाबंद जिलों में यह 55 प्रतिशत से अधिक है परिसंपत्ति की उपलब्धता सुकमा जिले में मात्र 44.1 प्रतिशत, और बीजापुर जिले में 45.3 प्रतिशत परिवारों के पास उपलब्ध है मात्र मुंगेली जिले में परिसम्पत्ति की उपलब्धता 72.4  प्रतिशत परिवारों को है।

 

अति निम्न कल्याण के क्षेत्र राज्य के उत्तरी एवं दक्षिणी विषम धरातल के क्षेत्र हैं जहां घने वन हैं। एवं जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत कम है। इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों की प्रधानता है सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा का वनों के क्षेत्र ($.36) और अनुसूचित जनजाति जनसंख्या ($.53) के साथ धनात्मक सहसंबंध पाया गया है। अतः इन क्षेत्रों में सूचकांक अधिक है जो इन क्षेत्रों में सामाजिक - आर्थिक कल्याण के निम्न स्तर को व्यक्त करता है।

 

निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ प्रदेश के सभी जिलों में सामाजिक कल्याण की मात्रा में भिन्नता पायी गई है। प्रदेश के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र में कल्याण की मात्रा अधिक पायी गई है। इन जिलों में पीने का पानी, बिजली की सुविधा, शौचालय सुविधा, बैकिंग सुविधा, स्नान घर एवं परिसंपत्ति इन 6 घटकों का प्रतिशत अधिक पाया गया है। शेष 3 घटक - जल निकासी की सुविधा, पृथक रसोई घर की सुविधा, एवं स्नान घर की सुविधा स्थान की कमी के कारण अपेक्षाकृत कम है। इसके विपरीत प्रदेश के उत्तरी एवं दक्षिणी विषम धरातल के क्षेत्रों में कल्याण की मात्रा कम पायी गई है इन क्षेत्रों में जल निकासी की सुविधा एवं पृथक रसोई घर दो घटकों का प्रतिशत अधिक है। क्योंकि इन क्षेत्रों में स्थान की कमी नहीं है जबकि शेष सात घटक का प्रतिशत कम पाया गया है। इन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम है एवं अनुसूचित जनजातियों की अधिकता है निष्कर्ष में छत्तीसगढ़ में सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा में भिन्नता भौगोलिक एवं जनांकिकीय कारकों से निर्धारित है। निष्कर्ष में सामाजिक - आर्थिक कल्याण की मात्रा में भिन्नता भौगोलिक एवं जनांकिकीय कारकों से निर्धारित है।

 

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Received on 03.07.2017       Modified on 20.07.2017

Accepted on 15.09.2017      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2017; 5(3):  171-180 .